लोग कहते है कि माजी* इतिहास बनता है।
लेकिन हम कहते है कि मेरा माजी प्रेरणा और एक आश बनता है॥
*माजी का तत्पर्य है बीता हुआ कल
"कुछ बिखरी यादें "-- में आपका स्वागत है ! जिंदगी की एक कोरी डायरी के कई पन्ने मैंने काले नीले और कई तरह के रंगों से भरे है उन रंगों को यहाँ उकेरने की यह एक छोटी कोशिश है |
Thursday, November 12, 2009
Thursday, September 17, 2009
भारत :बदली आज की तस्वीर
"भारत " का शाब्दिक अर्थ होता है भा से रत यानि प्रकाशवान या चमक से परिपूर्ण।
किँतु आज चमक विलुप्त हो रही है हम कहाँ जा रहे है ये प्रश्न आज विचारणीय है,आज का युवा ध्रूमपान ,अन्य वस्तुओँ से इस प्रकार लिप्सित है कि वो जब स्वयं के बारे मे नही सोँच पा रहा है तो इस राष्ट्र या समाज के बारे मे क्या सोँचेगा।
हम सब आज एक सिर्फ बोझ ढो रहे है,और यही बोझ ढोते ढोते जीवन समाप्त कर देगेँ।क्यो हमारा खून नही खौलता जब देश मे घुस कर वे हमारे सीने पर वार करते है,क्यो हमारा खून नही खौलता जब कुछ राजनीतिज्ञ अपने स्वार्थ के लिए गंदी राजनीति खेलते है ;क्यो हमारा खून नही खौलता जब भारतीय परम्पराओँ ,संस्क्रति का मखौल उडाया जाता है क्योँकि हम सब सोँचते है कि ये दर्द मेरे नही लेकिन जब पत्थर अपने सिर पर पडता है तब सिर्फ हम कोसते है कभी सरकार को कभी समाज को लेकिन अपने गिरेबान मेँ कोई नही झाकना चाहता।अतः उस पत्थर का इंतजार मत करो जो न सिर्फ तुम्हारे सिर को फोडे बल्कि तुम्हारे जिगर को भी छलनी कर दे।
क्योकि वो पत्थर कभी तुम्हे विरोध करने का साहस नही जुटाने देगा।
अतः इंतजार मत करो आज खडे हो अभी खडे हो॥
* ** *** ** ** *
विवेक सचान"अविरल"
EE-22
किँतु आज चमक विलुप्त हो रही है हम कहाँ जा रहे है ये प्रश्न आज विचारणीय है,आज का युवा ध्रूमपान ,अन्य वस्तुओँ से इस प्रकार लिप्सित है कि वो जब स्वयं के बारे मे नही सोँच पा रहा है तो इस राष्ट्र या समाज के बारे मे क्या सोँचेगा।
हम सब आज एक सिर्फ बोझ ढो रहे है,और यही बोझ ढोते ढोते जीवन समाप्त कर देगेँ।क्यो हमारा खून नही खौलता जब देश मे घुस कर वे हमारे सीने पर वार करते है,क्यो हमारा खून नही खौलता जब कुछ राजनीतिज्ञ अपने स्वार्थ के लिए गंदी राजनीति खेलते है ;क्यो हमारा खून नही खौलता जब भारतीय परम्पराओँ ,संस्क्रति का मखौल उडाया जाता है क्योँकि हम सब सोँचते है कि ये दर्द मेरे नही लेकिन जब पत्थर अपने सिर पर पडता है तब सिर्फ हम कोसते है कभी सरकार को कभी समाज को लेकिन अपने गिरेबान मेँ कोई नही झाकना चाहता।अतः उस पत्थर का इंतजार मत करो जो न सिर्फ तुम्हारे सिर को फोडे बल्कि तुम्हारे जिगर को भी छलनी कर दे।
क्योकि वो पत्थर कभी तुम्हे विरोध करने का साहस नही जुटाने देगा।
अतः इंतजार मत करो आज खडे हो अभी खडे हो॥
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विवेक सचान"अविरल"
EE-22
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