Wednesday, September 22, 2010

कुछ फिर दिल से .................


हम तो अपने दर्द के फ़साने पढते थे ;
शायद ही कभी इश्क की चर्चा करते थे;
किसी की मुस्कराहटो का कुछ हुआ असर ऐसा ;
कि अब तो सिर्फ परवाने इश्क ही गाते नजर आने लगे.........................

धर्म से

तुम कहते हो की हम हिन्दू मुस्लिम भेद करते है ;
जरा नजर उठाओ धर्म के ठेकेदारों ;
हम कुरान
वो वेद पढ़ते है
ये साम्प्रदायिकता तुम नेताओ के चोचले है
हम तो दीवाली में अली ;
रमजान में राम देखते है

इश्क की गलियों से


इश्क की गलियों की सर फरमाइए ;
वक्त की कमी का मत ख्याल कीजिये;
जीने के लिए तो वक्त तो बुत है जनाब ;
बस जनाजे से पहले सेहरे का इंतजाम कीजिये .................