Tuesday, February 11, 2014

अपनापन


अपनापन

“छोटू ये चाकलेट आपके लिए और स्वीटी ये आपके लिए , ये टेनिस किट आप के लिए ” अपने बैग से सारा सामान राज ने निकाल कर बच्चों में बाँट दिया था | “अगर आप जैसे कुछ लोग और हो तो समाज में वास्तव में बदलाव आ सकता है” तभी अपनालय की संरक्षिका मालती  ने  राज को बच्चो के बीच  खेलते देख कर आवाज दी | “ समाज की चिंता तो समाज ही कर सकता है मैडम मालती ,हम तो बस अपने हिस्से का प्यार दे रहे है और इन्हें सिर्फ प्यार की जरुरत है ” राज ने पीछे मुडते हुए प्रत्युत्तर में  कहा था | आज शुक्रवार का दिन था और राज की ये शाम अपनालय के बच्चों के बीच बीतती थी | हर शुक्रवार की शाम अपनालय में बिताना राज की जिंदगी का अभिन्न हिस्सा बन चुका था | अपनालय अनाथ बच्चो का पालन पोषण करने वाली एक संस्था है और  ये घर उन बीसों बच्चों  का आवास था जिनके सर पर माँ बाप का साया नही होता ,खाने के दो जून की रोटी और पहनने के लिए वस्त्र | इन सभी बच्चों का भरण –पोषण अपनालय ट्रस्ट द्वारा किया जाता था | शहर से कुछ दूर बाहर स्थित इस अनाथ आश्रम के नाम में भी प्यार जुडा था | अपनालय शब्द से सिर्फ प्यार की अनुभूति और अपनापन झलकता था | अपनालय का सुन्दर भवन शहर से गुजरने वाले हर शख्स के लिए कौतूहल का विषय अवश्य होता था | जितना प्यारा नाम था उतना ही अच्छा घर का डिजाईन , एक ओर छोटा सा पार्क और बीचो बीच मुख्य आवास | हाँ बस धीरे –धीरे समय के दुष्चक्र ने बाहरी दीवारों को थोडा सा रंगहीन जरुर कर दिया था | पर प्यार अभी भी वैसा ही था ,मालती और उनके सहायक आज भी उसी तत्परता से वहाँ का अपनापन खोने नही देते थे , और सब प्रयास पूर्वक उन्हें अपनापन देने की कोशिश करते जिनसे ईश्वर ने बचपन में ही प्यार छीन लिया था | यहाँ आकर राज को अजीब सी शांति मिलती थी ,तभी शायद सप्ताह की व्यस्त दिनचर्या से एक दिन निकाल कर खुशी की खोज में एक शाम बिताने आ जाता था ,ऐसा नही था कि राज के जीवन में किसी बात की कमी थी जिंदगी में बिन मांगे ही ईश्वर ने सारी खुशियाँ उसके दामन में समेंट कर दी हुई थी | राज एक इंजिनियर था ,१० वर्ष पूर्व उसकी इच्छानुसार ही उसका विवाह  सबकी सहमति से श्रुति से हुआ था | श्रुति भी एक इंजिनियर थी| श्रुति और राज कॉलेज फ्रेंड थे , वहीं से दोनों के बीच प्यार हुआ फिर शादी| कॉलेज दिनों से लेकर आज तक दोनों की सिर्फ लोगो ने प्रशंसा ही की थी | अब उनके ६ वर्ष का एक पुत्र अनय भी था | पर अब भी न  राज की स्मार्टनेस पर कोई संदेह था और न ही श्रुति की खूबसूरती पर | बस अनय के पैदा होने के बाद से श्रुति ने जॉब छोड़ दिया था और दिन भर अपने घर को सजाने सवाँरने में  लगी रहती थी |उनकी जिंदगी में सब कुछ व्यवस्थित ढंग से चल रहा था | ईश्वर ने खुशियों का हर एक रंग उनके आंगन में बिखेर रखा था | उसकी जिंदगी बेहद प्यार करने वाली पत्नी और बेहद प्यारे पुत्र संग आबाद थी| न ही कोई खुशी अधूरी थी, न ही किसी नई खुशी की दरख्वास्त |
   पर इन यतीम बच्चों से उसे अपनापन था , उसे यह बहुत बेहतर महसूस होता था | कभी –कभी  राज के साथ श्रुति और अनय भी यहाँ आते | राज की ये शाम बच्चों  के साथ खेलते मस्ती करते बीतती थी | उन बच्चों के बीच राज स्वयं बच्चा बन  जाता था , हाँ बच्चा ही तो था  कभी बच्चो के लिए क्रिकेट कोच होता , कभी सांता क्लॉज, तो कभी रोनाल्डो और न जाने क्या क्या सिर्फ बच्चों के लिये | और यहाँ के बच्चे भी राज से प्यार करने लगे थे ,उन्हें भी  शुक्रवार का बड़ी बेसब्री से इंतजार रहता  था |  हर शुक्रवार की शाम ऑफिस से लौटते राजेश वहाँ पहुँचता था , सब उसे घेर लेते और राज भी उन्हें निराश नही करता ,वह भी उनके लिए ढेर सारे गिफ्ट लेकर ही जाता था | वैसे तो सारे बच्चे बहुत प्यारे थे लेकिन राज को अविरल और अदिति से लगाव कुछ ज्यादा ही हो गया था | उसने दोनों के प्यार के नाम भी रख दिए थे , छोटू  और स्वीटी | स्वीटी बेहद प्यारी ३ वर्ष की बच्ची थी | वह राज के हरदम पास ही रहती जब तक वह वहाँ रहता | ये शाम भी कुछ ऐसी ही थी , हमेशा की तरह |
खैर रात का खाना अपनालय में सबके साथ खाकर राज वहाँ से चल दिया था | रास्ते में कभी अनय , कभी स्वीटी ,कभी श्रुति और कभी अपने बचपन के ख्यालो में डूबा जल्दी से घर पहुँचना चाह रहा था, क्योकि जानता था की घर में श्रुति भी डिनर पर उसका इंतजार कर रही है | कुछ देर का वक्त लगा , राज घर पहुंच गया था | डोर बेल बजाने से पहले ही श्रुति ने दरवाजा खोल दिया ज्यों दरवाजे पर खड़ी ही राज का इंतजार कर रही हो | अंदर जाते हुए राज ने चिर -परिचित अंदाज में कहा था  “ गुड ईवनिंग स्वीटहर्ट ” | बदले में उसे भी चिर-परिचित जवाब मिला था “ आज फिर लेट ” |  राज ने थोडा अजीब तरह से देखा जैसा कहना चाह रहा हो ‘कि क्या यार मैं  पांच बजे घर आऊँ तब भी लेट और रात के नौ बजे तब भी’? पर कहा नही क्योकिं आज के दिन थोडा सा लेट जरुर था | श्रुति ने उससे जल्दी से कपडे बदल कर, फ्रेश होकर डिनर पर आने को कहा था | राज को भी ये बताने कि जरुरत नही थी कि वो कहाँ से आया था क्योकि आज शुक्रवार का दिन था और श्रुति उसकी आदतों से अनजान न थी | थोड़ी देर में राज नहा-धो कर फ्रेश होकर डायनिंग टेबल पर आ गया था | श्रुति तब तक किचेन में थी शायद खाना गर्म कर रही थी | राज को डिनर का बिल्कुल भी मन नही था , पर श्रुति को मना भी कैसे कर सकता था | डिनर करते हुए ही उसने अनय के बारे में पूँछा  तो श्रुति ने बताया अभी तक टी. वी. देख रहा था शायद सो गया है| खाने कि जगह कहाँ थी सिर्फ उपक्रम करके  वह श्रुति के पास बैठा हुआ था | थोड़ी देर में श्रुति ने डिनर खत्म किया था और किचेन , डायनिंग टेबल साफ करने में लग गयी थी | तब तक राज अनय के पास आ गया था ,अनय टी.वी.देखते हुए  सोफे पर ही सो गया था और शायद श्रुति टी. वी. ऑफ कर गयी होगी |राज ने अनय  को उठा कर बेड रूम में सुला दिया था और खुद भी वहीं लेट गया था | पता नही क्यूँ उसे अनय का अकेलापन , अपने बचपन का अकेलापन  लगता था | जब भी वो अनय के साथ होता  उसे बड़ी शिद्दत से उसकी जिंदगी का अकेलापन महसूस होता था | उसे लगता कि अनय को एक दोस्त की जरुरत है अकेला खेलता है या फिर श्रुति के साथ,पर श्रुति जब व्यस्त होती तो उसे जबरन अकेले रहना पडता है | फिर राज को लगता कि उसका बचपन भी तो कुछ ऐसा ही था , वो भी तो बचपन में खुद के अकेलेपन को दूर करने के लिए खिलौनों का सहारा लेता था और फिर खीझ में कभी-कभी उन्हें तोड़ भी देता था | धीरे-धीरे जब खिलौने बंद हो गए तो वह और भी अकेला हो गया था | जिंदगी के उन  दिनों की याद उसे आज भी आती है | उसकी जिंदगी का जो खालीपन , जो श्रुति के आने के पहले तक था , वो उसे मन ही मन में कंपा देता था | वो स्वीटी का खोना ,वो १५ साल का समय ,७ साल की  बोर्डिंग,फिर बी.ई. तक बिना दोस्त के , शायद जिंदगी का सबसे बड़ा शून्य था जिसे अब श्रुति और अनय ने पूरा तो कर दिया था , पर भुलवा नही सके ........| वो अनय के साथ ऐसा नही होने देगा ...................|
इन्हीं भावों में खोया था कि श्रुति ने आवाज दी ,राज अनय के बेडरूम की ए.सी. को स्लीप मोड में लगा कर अपने बेडरूम में आ गया और टेबल लैम्प के उजाले में कोई किताब पलटने लगा , थोड़ी देर में श्रुति नाइट गाउन में आई  तो राज ने चुटकी ली थी “ क्या बात है आप उम्र ढ़लने के साथ और खूबसूरत होती जा रही है ” श्रुति के चेहरे पर एक चिर परिचित शर्मीली मुस्कान तैर गयी थी और लेटते हुए प्रत्युत्तर में प्यारी सी धौल राज की पींठ पर जमा दी थी|
फिर दोनों बातों में मशगूल हो गए  कभी अनय की स्कूलिंग , कभी ऑफिस ? फिर अपनालय विजिट , कैसे क्रिकेट खेला फिर फुटबाल  फिर डिनर भी......| श्रुति उसकी हर एक बात की यूँ  प्रतिक्रिया कर रही थी जैसे उसका वहाँ मौजूद ना होना उसे खल रहा हो  | फिर राज ने बातों ही बातों में उससे पूंछा –
तुम्हे स्वीटी कैसी लगती है ? कौन ?अदिति? वो अपनालय में ? हाँ ?वेरी क्यूट – बहुत प्यारी है, पर तुम ऐसे  क्यूँ पूछ रहे हो?
“बस पता नही तुम क्या सोंचो ..........” राज ने कुछ अनकहा छोड़ दिया था, फिर कहा “मैं उसे एडाप्ट करना चाहता हूँ ” श्रुति को थोडा अजीब सा लगा , पता नही क्यूँ ,वो उठ कर बैठ गयी थी , पर राज बोले जा रहा था –मैं कई दिन से तुमसे कहना चाह रहा था ......... पर क्यों ? श्रुति ने बीच में ही रोककर ही उससे पूँछा |
“पता नही क्यूँ मुझे अनय का अकेलापन हमेशा परेशान करता है” श्रुति राज ने कहा था |
तो हम दूसरे बच्चे के बारे में सोंच सकते है ? पर राज जानता था कि भावावेग के अतिरेक में श्रुति ऐसा कह गयी थी | शायद दोनों जानते थे कि अनय के पैदा होते समय कितनी समस्या हुई थी | बड़ी मुश्किल से ही डॉक्टर दोनों को सुरक्षित बचा पाए थे.........|
 पूरे कमरे में कुछ समय के लिए अजीब सा सन्नाटा पसर गया था | कुछ देर बाद राज ने धीरे से पूंछा था कि तुम्हे उसे एडाप्ट करने में समस्या क्या है श्रुति ? श्रुति कि आवाज उससे भी धीरे हो चली थी “ राज तुम जानते ........ पर मैं चाहती हूँ  मेरे बच्चों से मेरा अपनापन जुडा हो | पता नही अभी ठीक , पर मैं कभी बदल गयी ,कमजोर पड़ गयी.......| मैं बस इतना चाहती हूँ कि हमारे बच्चो से हमारे किसी का रक्तसंबंध हो, किसी एक का अपनापन जुड़ा हो..राज ..........| अगर मुझमे कुछ कमी हैं तो उसकी सजा तुम्हे क्यूँ ....? उसकी सजा हमारे बच्चो को क्यों .........? ” उसके चेहरे में आंसुओ कि धार बह चली , वो शायद कुछ कहना चाह रही थी , पर शायद सिसकियों कि दबिश ने उसकी आवाज को और भी दबा दिया था |
 राज ने श्रुति के हाथ को अपने हाथ में थामते हुए दलील दी थी श्रुति मुझे अपने प्यार पर पूरा भरोसा है  और तुम भी मेरा प्यार हो वो भी पहला ,अपनापन किसी रक्तसंबंध का मोहताज नही होता है ,श्रुति | अपनेपन के लिए एक बेहतर दिल चाहिए , जो एक इंसान को बेहतर बनाता है और इस बारे में तुम्हारे बारे में मुझसे बेहतर कौन जान सकता है श्रुति.............. ? राज ने श्रुति कि आँखों में आ रहे आंसुओ को पोछते हुए कहा था | श्रुति तुम हमेशा सोशल सर्विस कि पक्षधर रही हो , तुमने हमेशा मेरे इन विचारों का समर्थन किया हैं ... राज लगातार बोल रहा था.. अगर  हमारे इस प्रयास  से एक बच्चे को  सहारा मिलता है तो बुरा क्या है ? समाज हमसे बनता है .. शायद समाज के लिए ये एक नयी प्रेरणा हो और फिर हमारे इस कदम से एक बेसहारा को माँ – बाप का प्यार मिलेगा और अनय को एक दोस्त - बहन का.....|
बहुत देर तक राज श्रुति को इसी तरह समझा रहा था | श्रुति भी उसी बातों का जवाब देना चाह रही थीं पर राज की दलीलों की काट उसके पास नही थी और राज भी जानता था कि श्रुति भी उसकी तरह भावुक है ; वह उसके कहने को टाल नही पायेगी , पर राज स्वीटी को श्रुति पर थोपना नही चाहता था | राज प्यार को प्यार से जीतना चाहता था और शायद वो इस कला में माहिर भी था|
श्रुति को भी महसूस होने लगा था कि शायद राज ठीक कह रहा है , किसी पराये को अपनापन  देने में बुरा क्या है ? किसी यतीम को माँ – बाप का प्यार देने में क्या हर्ज है ? इसीलिए शायद थोड़ी देर बाद श्रुति ने डबडबाती आँखों संग मुस्करा कर राज  को सहमति दे दी थी | राज को तो ज्यों सारी खुशियाँ मिल गयी हों ,उसने तुरंत श्रुति को गले से लगा लिया था |
राज इधर दो तीन दिन ऑफिस से छुट्टी ले कर , सारी  क़ानूनी कार्यवाही पूरी करके स्वीटी को उसके नए घर ले आया था |श्रुति भी उसकी पूरी मदद कर रही थी | स्वीटी को अपने नए घर , नए मम्मी पापा, नए भाई के साथ सामंजस्य बिठाने में कुछ वक्त जरुर लगा था , पर जल्द ही अपने भाई के साथ हँसने ,खेलने लगी थी , कभी रेलगाड़ी के खिलौने तो कभी कुछ और ,पर सिर्फ प्यार था ,अपनापन था | स्वीटी रूपी कली की मुस्कराहट से पूरा घर महक उठा था | राज खड़े होकर देख रहा था कभी स्वीटी – अनय हँसते , कभी चुप, तो कभी चिल्ला पडते |
उन्हें साथ देखकर राज को अपनी जिंदगी की २५ वर्ष पुरानी यादें ताजा हो गयी थी | जब वह १० वर्ष का था, तभी उसकी बहन की मृत्यु एक हादसे में हो गयी | उसकी कमी उसे आज भी सालती थी , उसकी प्यारी यादें आज भी उसे कचोटती हैं | शायद तभी आज भी रक्षाबंधन को कलाई पर राखी का इन्तजार रहता है  तो कभी उसे बस अपने साथ खेलती , गुस्साती २५ वर्ष पुरानी तुतलाती , इठलाती  ६ वर्ष कि स्वीटी याद आ रही थी | अनय स्वीटी को साथ देखकर राज को बचपन कि कडुवी – मीठी यादें ताजा हो गयी थी और अनचाहे ही आँसू की दो बूंद टपक पड़ी थी | तभी राज ने अपने कंधे पर चूडियों कि खनखन करता हुआ एक हाथ महसूस किया था और फुसफुसाती आवाज भी , श्रुति की –
थैंक्स ?  किसलिये ? छ: साल बाद फिर से मातृत्व का सुख देने के लिए ? थैंक्स टू यू टू ? किसलिए ? “हमे और हम दोनों के परिवार को इतना अपनापन देने के लिए ” राज ने श्रुति के हाथ को धीरे से दबाते हुए कहा था |
(विवेक सचान )
(लखनऊ)

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