Thursday, August 20, 2015

“ मुझ सा सरकारी अफसर भी बदसूरत लग रहा है तुमको सनम "

हमारे कालेज के साथ के हमारे एक मित्र है शर्मा जी जाति के ब्राह्मण एक दम टिपिकल ब्राह्मण बस जनेऊ, शिखा और रुद्राक्ष धारण नही करते| प्राइवेट कालेज से पढाई करी इंजीनियरिंग की ,और अभी नौकरी कर रहे है राजस्थान सरकार की| यही राजस्थान के सिरोही जिले में बिजली विभाग में कनिष्ठ अभियंता के पद पर ,शायद जल्दी ही सहायक अभियंता हो जायेगे | उनके गुण बखानो तो इतना ही कि दिल के बड़े साफ है और दुसरा बड़े ही जमीं से जुड़े हुए आदमी है ,बाकि शक्ल में हमसे भी थोड़े से गये गुजरे है और प्राइवेट में नौकरी वाले इन्सान उनके लिए दोयम दर्जे का प्राणी है | तो बात उस जमाने है की जब हम लोग कालेज में थे हा उसी प्राइवेट इंजीनियरिंग कालेज में तो हमारे साथ में एक कन्या पढ़ती थी वो भी सरनेम की शर्मा थी और वर्ग से ब्राहमण | उनकी तारीफ में जितना लिख पाउँगा कम होगा सुशील शिष्ट मृदुभाषी , हर कला में पारंगत , क्या लेखन था उनका शायद इतना बेहतरीन कि लेखक होकर भी मैं उनका भक्त था वो कई बार लोग ऐसा कहते है कि कवि और लेखक अपने समकालीन किसी लेखक की तारीफ नही कर सकते ईर्ष्या के कारण, गीत संगीत नृत्य कला चित्रकला में पारंगत , पूछने पर सिर्फ इतना पता चला था शायद प्रशिक्षको से इन सब कलाओ की शिक्षा ली हुई थी , और तो और सबसे अधिक जो बात मुझे पसंद थी वो ये कि इतना ज्ञानी होने के बाद भी भी हद से ज्यादा अंतर्मुखी हा हा अग्रेजी में इंट्रोवर्ट भी कहते है भाई | नही तो आज कल की पीढ़ी में अगर कोई शख्स इतना ज्ञानवान और कलाकार हो जाता है तो अपने आप से भी ढंग से बात नही करता है |
अभी कुछ दिन पहले की ही बात है अचानक एक दिन देखा फेसबुक के स्टेटस पंडित जी की प्रोफाइल को सूट नही कर रहे है सुबह से शाम हो गयी १० से पंद्रह दर्द से डूबी शायरी से उनकी टाइमलाइन ओवरफ्लो हो गयी है | एक शेर में तो उन्होंने अपनी बदनसीबी का रोना रो दिया वो भी बिलकुल देशी शायर की तर्ज में
“ मुझ सा सरकारी अफसर भी बदसूरत लग रहा है तुमको सनम
कोई तो खोट रहा होगा मेरी मलिका-ऐ –ख्वाब तेरी ऐनक में भी |”
कई शायरी और भी थी कुछ भानुमती का कुनबा थी और कुछ गूगल बाबा की मेहरबानी , खैर मै ठहरा जिज्ञासु, घुसु , टीआरपी पिपासु पत्रकार टाइप का इंजिनियर ,मुझसे रहा न गया मैं अपनी जिज्ञासा शांत करने को पूछ ही बैठा “पंडित जी आज तो फिराख गोरखपुरी को भी फ़ैल कर दिए ,सब कुछ ठीक है न |" पंडित जी भी सीधे सादे आदमी हम प्राइवेट नौकरी वालो पर तंज कसते बोल पड़े “सिंह साहब तुम का जानो हम सरकारी अफसरों का दर्द , सुबह शाम सीनियर की सुनो , कभी मीडिया की गाली सुनो , कभी जनता की सुनो और आज कल तो ये एमएनसी में जॉब करने वाली लड़कियां भी भाव नही देती“
“ऐसा कौन सा जख्म दे गया भाई , अरे थोडा तफसील से बताओ पंडित जी “ मन के पुलकित भावो को बमुश्किल रोकते हमने भी चुटकी ले ली और मन ही मन ये सोच कर बचपन वाली स्टाइल में कालर को उठाने वाली फूंक मारी “ कि चाहे जितने साल राजस्थान में रह लो साला चकल्लस में हम कनपुरियों का कोई जवाब नही है “
फिर तो जैसे पंडित जी के भावों के सारे बांध बह गये “ अरे सिंह भाई यार वो अपने साथ कालेज में एक लड़की थी शर्मा , हमारे जाति की थी किसी सॉफ्टवेर कंपनी में काम कर रही है आज कल ........
“अरे कौन यार अपने साथ तो दो तीन थी भाई “ मैंने बीच में टोका
अरे भाई श्रुति शर्मा तुम्हारे सेक्शन में ही तो थी
“अच्छा अच्छाह्ह्ह्हह “ अब बात में थोडा और रस आ गया था और दिलचस्पी भी बढ गयी थी अपनी तो उन पर पहले से ही दिलचस्पी कितनी थी ऊपर के गुणों में बता ही चुका हूँ |
खैर पंडित जी ने किस्सा आगे बढाया
“तो वो आज कल किसी कंपनी में है प्राइवेट ही है”
अबे पंडित हम साथ में इंजीनियरिंग करे है हमे मालूम है कि सॉफ्टवेर कंपनी लगभग सब प्राइवेट ही है और वो जिस कंपनी में है वो अच्छी खासी एम्एनसी है | प्राइवेट कह कह के का मजा ले रहे हो बे
पंडित जी थोड़े तुनक गये | पर अपन टीआरपी पिपासु आदमी ऐसे कहाँ छोड़ने वाले थे फिर थोड़ी देर मांडवली करी , थोडा चने के झाड पर चढ़ाया तो फिर पंडित जी चालू हुए “ भाई कालेज के जमाने से पसंद थी मुझे , पर कभी कह नही पाए बस कभी कभी हाय बाए हो जाती थी फिर फेसबुक पर कभी कभी बातचीत हो जाती थी दो दिन पहले मैंने अपने मन की बात बोल दी यार फेसबुक पर चैटिंग में और उसने उस ने हमारे जैसे सरकारी अफसर को बोल दिया कभी शकल देखी आइने में “
मेरे मन में एक साथ दो दो लड्डू फूटे एक तो वो सरकारी अफसर की बेइज्जती और दूसरा कारण लिख कर अपनी नाकदरी नही करानी है मुझे |
हास्य अलग है परिहास अलग है फिर भी इस बातचीत के बाद एक किस्सा मन में उठा “ क्या सच में क्या आइना ही हर किसी की वास्तविक तस्वीर पेश करता है , क्या सच में कोई इन्सान कैसा है इसका निर्धारण सिर्फ उसका रूप तय करता है ,क्या सच में कोई शक्स इसलिए बुरा हो सकता है कि वो स्मार्ट,हैण्डसम नही दीखता है ,खूबसूरत नही दीखता है ,क्या सच में हमे किसी पर इस बात पर तरस आना चाहिए कि उसकी पत्नी का रंग सांवला है या फलानी के पति का रंग गेहुँआ न होकर श्यामवरनी है |
शायद नही फिर भी सामाजिक स्वीकार्यताओं में प्राथमिकता वर्ण को क्यूँ, सिर्फ आइने में दिख रही तस्वीर को ही क्यूँ ? क्या सच में हर हमेशा सूरत को सीरत पर तरजीह मिलेगी ?
मेरा तो मानना है आइना में दिखने वाली तस्वीर सिर्फ पुराने ज़माने की फोटो से पहले बनने वाले उस नेगटिव की तरह है जिससे बहुत बेहतरीन तस्वीर बनती है ,शायद लोगो को ये सीखना होगा की किसी के वर्ण रंग और रूप देखकर उस इन्सान के व्यक्तित्व को तौलना नाइंसाफी है |
-विवेक सिंह

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